Thursday, October 20, 2011

अच्छा तालिबान बुरा तालिबान

पाकिस्तान एक ऐसा मुल्क है जो एक ही संगठन तालिबान को दो निगाहों से देखता है। वहां की मीडिया मे अकसर अच्छा तालिबान और बुरा तालिबान लफ़्ज का इस्तेमाल होता है। अच्छे तालिबान से पाकिस्तानियों का आशय उस समूह से है जो भारत और अमेरिका के खिलाफ़ जेहाद करता है। बुरा तालिबान उसे कहा जाता है जो पाकिस्तान के सैनिक प्रतिष्ठानो पर हमले कर रहा है ।तालिबान संगंठन को अमेरिका और पाकिस्तान ने सोवियत फ़ौजो को बाहर खदेड़ने के लिये बनाया था। 

सोवियत सेनाओ के हटने के बाद अफ़गानिस्तान में तालिबान का शासन हो गया और पाकिस्तान ने जेहादियों का रूख भारत समेत दुनिया के अन्य देशो के विरूद्ध कर दिया। जाहिर है ऐसे में जेहाद विरोधी शक्तियों ने कुछ करना ही था सो तालिबान के विरूद्ध लड़ रहे अहमद शाह मसूद को सहायता दी जाने लगी। इसी बीच अलकायदा ने अमेरिका पर हमला कर इस क्षेत्र को एक बार फ़िर युद्ध का मैदान बना दिया।

अब अमेरिका मे यह आम राय बन सुकी है कि पाकिस्तान ने जानबूझ कर अमेरिका को अफ़गानिस्तान मे खींचा था और 9/11  के हमले में आईएसाई का या तो सीधा हांथ था या कह से कम वह इस से वाकिफ़ थी। पाकिस्तान मे ओसामा बिन लादेन के मिलने के बहुत पहले ही यह बात अमेरिका को समझ मे आ चुकी थी कि तालिबान को पाकिस्तान की मदद भी मिल रही है और छ्पने और ट्रेनिंग के लिये सुरक्षित ठिकाने भी और चूकी ऐसे ठिकाने ज्यादातर घनी रिहाईश वाले इलाके हैं अतः उनपर ड्रोन हमले करना भी आसान काम नही है। ऐसे में जब भी अमेरिका पाकिस्तान को इन ठिकानो की खुफ़िया सूचना देता पाकिस्तान उन ठिकानों मे मौजूद आतंकवादियों को वहा से हटने का संदेशा पहुंचा देता। रोज अपने सैनिको के शव उठाता और अपने साथ साथ पाकिस्तान का भी बिल भरता अमेरिका अब यह समझ गया था कि पाकिस्तान पर नकेल कसे बिना उसकी मुक्ती संभव नही। वहीं दूसरी ओर बगुला भगत बना पाकिस्तान आराम से अपने आका और पूरी दुनिया के काका याने अमेरिका की छीछालेदर होता निहार रहा था। जितने ज्यादा से ज्यादा दिन अमेरिका अफ़गानिस्तान में बना रहे पाकिस्तान का उतना ही फ़ायदा इसी मूलमंत्र के आधार पर तो उसने अमेरिका को फ़ंसाया था।


अमेरिका ने इस चाल का तोड़ ऐसे निकाला कि उसने पाकिस्तान के इलाके स्वात और बाजौर से लड़ रहे तालिबान के धड़े तहरीक ए तालीबान पर हमला करने के लिये उसने पाकिस्तान पर जबरदस्त दबाव डाला साथ ही पूरे आपरेशन का खर्चा उठाने और बेहतरीन हथियार उपलब्ध कराने का भी वादा किया। पैसों के लालच में पाकिस्तान जाल में फ़स गया,  उसने हमले शुरू कर दिये। जाहिर है नुकसान उठाने के बाद तहरीक ए तालीबन ने अपनी बंदूंको का मुह पाकिस्तान की ओर मोड़ दिया और दोनो मे लड़ाई छिड़ गयी। अमेरिका ने अगली चाल चली, तहरीक ए तालिबान को अफ़गानिस्तान में सुरक्षित ठिकाने दे दिये  और उसके प्रभाव वाले इलाकॊं जैसे चित्राल आदि से अपने और अफ़गान दोनो  सैनिक हटा दिये। साथ ही पाकिस्तान से सप्लाई लाईन कट जाने के बाद तहरीक ए तालिबान को अफ़गानिस्तान से हथियार आदि मुहैय्या कराना शुरू कर दिया।


अब पाकिस्तान फ़स गया उसके सैनिक ठिकानो और आईएसआई के दफ़्तरों पर आत्मघाती हमले शुरू हो गये साथ ही दरगाहों और गैर सुन्नी मस्जिदों पर भी। पाकिस्तानी कैडर को जिहाद का पाठ पढ़ाना भी भारी पड़ा और पाकिस्तान मे पहले से ही कई समूह थे जिनका मकसद पूर्ण इस्लामिक राष्ट्र की स्थापना था। पाकिस्तान के जमींदार व्यापारी नेता और अफ़सर जाहिर है कि इस्लाम को अपने रूप मे ही लेते हैं और यहां तक की पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल कियानी खुले आम धूम्रपान आदी करते हैं। ऐसे में पाकिस्तानी सेना से तहरीक ए तालीबान को मदद मिलने लगी और उसके सैन्य प्रतिष्ठान हमलो का शिकार होने लगे हद तो तब हो गयी जब करांची के नौसैनिक हवाई अड्डे पर हमला कर जेहादियों ने पाकिस्तान के विमानों को ही उड़ा दिया उससे भी बड़ी बात कि इस हमले मे सेना के अफ़सर और जवान शामिल थे।


खैर अब अमेरिका से पाकिस्तान जब यह अनुरोध करता है कि बुरे तालिबान याने तहरीक ए तालिबान पर हमले करे। तो अमेरिका उससे कहता है कि पहले पाकिस्तान  अच्छे तालिबान याने की हक्कानी नेटवर्क और मुल्ला उमर पर हमले करे। जाहिर है कि पहले ही तहरीक ए तालिबान के कहर से पीड़ित पाकिस्तान अब हक्कानियों का कहर तो झेल नही सकत। सो उसका कहना अब यह है कि हक्कानी समूह पर हमला किये तो नही पर उन्हे बातचीत की टेबल पर लाया जा सकता है।  अमेरिका का यह सोचना है कि बिना हक्कानी समूह को कमजोर किये अगर बातचीत की जायेगी तो बातचीत का वैसा नतीजा नही निकलेगा जैसा अमेरिका चाहता है। फ़िर भी अभी पाकिस्तान,  अमेरिका और तालिबान में बातचीत चल रही है। बातचीत किस दिशा मे जा रही है यह तो नही कहा जा सकता है पर जिस तरह अमेरिका ने वजीरिस्तान सीमा को सील कर उसमे सेना को तैनात कर दिया है। और उधर पाकिस्तान "हमे आपके पैसे नही चाहिये",  "हम परमाणू शक्ती संपन्न देश हैं हमे अमेरिका हल्के मे न ले" ऐसे बयान दे रहा है।

अगले हफ़्ते अमेरिका के सभी विभागो के प्रमुख हिलेरी क्लिंटन के साथ आ रहे हैं। तब फ़ैसला होगा कि दोनो देशो का रूख आगे क्या होगा। भारत का हित तो इसी में है कि पाकिस्तान पर हमले किये जाये और तालीबान को जड़ मूल से खत्म कर दिया जाये। पर देखना यह है कि पाकिस्तान क्या अफ़गानिस्तान बनने की ओर अग्रसर होगा या फ़िर अपनी खुरापात छोड़ कर एक शरीफ़ मुल्क बनना चाहेगा। रास्ता कठिन है और पाकिस्तान की मुल्ला ब्रिगेड का रूख क्या रहता है उस पर निर्भर करता है।

शेष अगले लेख में

1 comment:

  1. बहुत-बहुत बधाई ||
    खूबसूरत ||

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