Saturday, September 8, 2012

अब आया पाकिस्तान पहाड़ के नीचे



 अमेरिका द्वारा हक्कानी नेटवर्क को आतंकवादी संगठन करार किये  के पाकिस्तान के लिये बहुत गंभीर परिणाम होंगे। इस प्रतिबंध के प्रावधानो के तहत ऐसे आतंकवादी संगठनो को हथियार और मदद प्रदान करने वाले सभी संगठनो पर शिकंजा और कार्यवाही शामिल है। हक्कानी नेटवर्क  वह संगठन है जो अफ़गानिस्तान मे अमेरिका को जान माल की क्षति पहुंचाने वाला प्रमुख पख्तून कबिलाई समूह है। अब इसे खत्म किये बिना अमेरिका अफ़गानिस्तान से बाहर नही निकल सकता है। हक्कानी समूह का पूरा आर्थिक, सैनिक साम्राज्य पाकिस्तान के कबिलाई इलाको से नियंत्रित होता है और उसके अंदर आई एस आई की गहरी पैठ है।  हक्कानियो के पाकिस्तान से संचालन के कारण अमेरिका उसे गंभीर नुकसान पहुंचाने मे असफ़ल रहा। उस पर किये गये ड्रोन हमले भी पाकिस्तान की खुफ़िया एजेंसी आईएसआई की तकनीकी मदद के कारण हक्कानियो को घातक चोट से बचा लेती है। और पाकिस्तान मे सीधी जमीनी कार्यवाही बिना पाकिस्तान से जंग का एलान किये बिना अमेरिका नही कर सकता था।


अब  अमेरिका का इंटरनेशनल फ़ोरम में पाकिस्तान द्वारा हक्कानी नेटवर्क को दी जा रही मदद के सबूत रखेगा,  पाकिस्तान को एक आतंकवादी राष्ट्र घोषित करने का दबाव बनायेगा। हालांकि चीन और रूस जैसे देश इस कदम का विरोध करेंगे लेकिन फ़िर भी संयुक्त राष्ट्र के बिना भी यूरोपीय देशो के साथ मिल वह पाकिस्तान पर एक तरफ़ा आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है। इसके बाद  पाकिस्तान  के  इरान की तरह बाकी दुनिया से  आर्थिक संबध लगभग खत्म हो जायेंगे। हक्कानी नेटवर्क की मदद में सीधे रूप मे शामिल आई एस आई की गतिविधियो पर भी अब लगाम लगाई जायेगी। जिसमे विदेशो मे उसके आर्थिक स्त्रोत बंद और खाते सील किये जा सकेंगे। और हक्कानियो के साथ नजर आने वाले उसके एजेंटो पर भी हमले किये जा सकते है।


पाकिस्तान के पास अब रास्ते कम बचे है। इरान की तरह उसके पास तेल भी नही है, अर्थव्य्वस्था पहले ही तबाह है। ऐसे में अमेरिका बादशाह के सामने देर सवेर उसे घुटने टेकने ही है। परंतु  हक्कानियो से पल्ला झाड़ने के भी गंभीर दुष्परिणाम होंगे। वही दुष्परिणाम जिनका स्वाद आज पाकिस्तान भोग रहा है। आतंकवादियो को कूटनीतिक लक्ष्य के लिये तैयार किया जाता है। लेकिन जब वह लक्ष्य पूरा हो जाये या उसे छोड़ना हो, तो ऐसे में आतंकवादी किसी काम के नही रहते। जब आप उनसे पल्ला झाड़ लेते है तो उन आतंकवादियो की बंदूके अपने ही बनाने वालो की ओर मुड़ जाती है। तहरीक-ए-तालीबान जो आज पाकिस्तान में कहर बरपा रहा है इसका बढ़िया उदाहरण है। लेकिन हक्कानीयो के सामने तहरीक-ए-तालीबान बच्चे है। जो हक्कानी अमेरिका जैसे सुपरपावर को नाको चने चबवा सकता है। वो पाकिस्तान का क्या हाल करेगा, यह कल्पना भी मुश्किल है। इसी कल्पना से पाकिस्तान सकपकाया हुआ है।


बात इससे भी आगे की है। पाकिस्तान ने अपने मदरसो को जिहादियो  का कारखाना बनाया हुआ है। उसके नागरिको और सेना  के अंदर ही एक बड़ा ऐसा वर्ग है। जिसकी सहानुभूती तालीबान के साथ में है। ऐसे में जब टकराव होगा तो  पाकिस्तान  की चूले हिल जायेंगी। वो नफ़रत फ़ैलाने के बिजनेस के अंजाम से खौफ़ जदा है। इसलिये  आज वहां नीतियो मे आमूल चूल परिवर्तन की तैयारी हो चुकी है। उसे भारत की सीमाओ से अपनी फ़ौज और संसाधन हटा अफ़गान सीमा में हक्कानियो और अन्य तालिबानियो के खिलाफ़ लगाना होगा। ऐसा तभी हो सकेगा जब वह भारत के साथ दुश्मनी की अपनी चौसठ साल पुरानी नीती बदल दोस्ती और व्यापार की राह चुने। बिना कश्मीर का मुद्दा हल हुये व्यापार खोलना, इसी ओर बढ़ाया गया कदम है।

लेकिन हिंदुस्तान को एक हाथ में फ़ूल और दूसरे हाथ में तैयार बंदूक के साथ ही स्वागत करना चाहिये। जिस देश ने अपनी पूरी पीढ़ी को भारत से दुश्मनी और जिहाद का पाठ पढ़ाया हो। वहां के नेताओ और जनरलो की अकल भले ठिकाने आ गयी हो। लेकिन मुल्लाओ और कट्टरपंथियो की अकल ठिकाने अल्लाह और अमरीका के अलावा कोई नही ला सकता।

Monday, January 16, 2012

पाकिस्तान - हालात इतने बुरे भी नही

पाकिस्तान मे आज हंगामा खेज माहौल है। भारतीय मीडिया में दिखाई जा रही खबरो पर यकीं करे तो किसी भी समय वहा की सरकार के गिरने का फ़ौज के सत्ता पर काबिज होने का और प्रधानमंत्री गिलानी के अदालत की अवमानना के आरोप में जेल जाने की सूचना आ सकती है। वहां चल रहे दो मुकदमो NRO और मेमोगेट
मामले मे सरकार अदालत और फ़ौज में टकराव की स्थिती आ चुकी है। लेकिन हालात इतने संगीन भी नही है और सनसनीखेज कयासो के विपरीत पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार सोचे समझे प्लान के तहत ही कदम उठा रही है।

पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की सरकार के सामने मुसीबतो का अंबार है देश की अर्थव्यवस्था गर्त मे है। अपने चार साल के कार्यकाल मे गिलानी ने फ़ौज की हर बात मानी। हर नीती पर फ़ौज की सलाह का पालन किया लेकिन अब फ़ौज के लिये इस सरकार का रहना बर्दाश्त नही।  सेना की सोच है कि पाकिस्तान में अपनी कठपुतली सरकार बना पाकिस्तान के कानून में  फ़ेर बदल कर भ्रष्टाचार को कम कर और टैक्स वसूली को सख्त कर पाकिस्तान को अपने पैरो में खड़े करने का प्रयास किया जा सके।  मुख्य विपक्षी पार्टी नवाज शरीफ़ की है। जो खुद फ़ौज के द्वारा बनाये और फ़िर जन समर्थन मिलने के बाद अपनी नीतियो पर चलने के कारण निपटाये जा चुके हैं। ऐसे मे उनका सत्ता मे आना भी फ़ौज के लिये नुकसान देह ही है। सो फ़ौज आई एस आई को इमरान खान के साथ लगा नया पिठ्ठू बैठाने की तैयारी में है।


लेकिन फ़ौज की इस चाल को धक्का लगा है सुप्रीम कोर्ट से। पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट हमारी सुप्रीम कोर्ट की तरह नही है बल्कि नवाज शरीफ़ के नेतृत्व मे उठे जन सैलाब के दबाव मे इन जजो को रिहा और वापस पदो पर बहाल किया गया है। सो यह सुप्रीम कोर्ट अपने को केवल और केवल जनता के प्रति जवाबदेह मानती है और अपने पूर्ववर्तियो की अपेक्षा बेहद इमानदार और संविधान के हिसाब से चलने वाली है। फ़ौज मेमोगेट केस के माध्यम से राष्ट्रपति जरदारी और लोकतांत्रिक सरकार को निपटाने की तैयारी मे थी और इस काम को आठ दस महिनो बाद करना चाहती थी ताकि इमरान खान जिनकी पार्टी फ़िल्हाल नेताओ तक सीमित है को जमीनी स्तर पर ढांचा बनाने के लिये इमरान और आईएसआई को वक्त मिल जाये।

इस मामले के चौथे पहलू नवाज शरीफ़ (जिन्हे सुप्रीम कोर्ट की बहाली के आंदोलन के नेता होने के कारण सुप्रीम कोर्ट की सहानुभुती हासिल है) जो चाहते है कि अल्लाह कुछ करे तो राष्ट्रपति जरदारी और ये सरकार दोनो घर जाये। लेकिन वे यह भी नही चाहते कि खाली जगह मे उनके बदले फ़ौज का पिठ्ठू बैठ जाये वे अब पाकिस्तान को लोकतंत्र की पटरी से उतरा देखना बर्दाश्त नही कर सकते। उधर फ़ौज भी आर्थिक रूप से बदहाल देश मे तख्ता पलट कर बदनामी हासिल करने और फ़िर जनता की समस्या दूर न करने के कारण जनता का गुस्सा झेलने को तैयार नही।


फ़िल्हाल एन आर ओ केस मे गिलानी को अवमानना का नोटिस जारी हो चुका है उन्हे दो साल से सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति जरदारी के खिलाफ़ मुकदमा दायर करने के लिये स्विस अदालत को पत्र लिखने को कह रहा था सोलह जनवरी तक या उन्हे पत्र लिखना था या पत्र क्यो नही लिखा जा सकता इस बात का तर्क सुप्रीम कोर्ट में देना था। यह दोनो ही नही करने के कारण उन्हे अवमानना का नोटिस मिल चुका है। लेकिन उनके पास अभी रास्ते खत्म नही हुये हैं।  वे 19 जनवरी को अदालत मे पेश हो अपनी सफ़ाई देंगे और यह भी कहेंगे कि यह पत्र क्यो नही लिखा जा सकता। बेनजीर भुट्टॊ की शहादत और इस केस के चलने से उनकी बेईज्जती की बाते भी कहेंगे। साथ ही वे जरदारी को राष्ट्रपती होने के कारण किसी भी प्रकार के मुकदमे या आरोप से बचाव की बात रखेंगे। उनके आखिरी तर्क के उपर कोर्ट उन्हे इस पर विचार कर इस तर्क पर मामला साफ़ करने के लिये अगली तारीख दे देगा। साथ ही साथ गिलानी सुप्रीम कोर्ट को माई बाप भी कहेंगे और अदालत की तौहीन सपने में भी नही कर सकने की बात करेंगे। साथ ही यह भी याद दिलायेंगे कि सुप्रीम कोर्ट की बहाली का आदेश उन्होने ही जारी किया था और सुप्रीम कोर्ट की बहाली के लिये जेले भी काटी थी। आखिर में वे अदालत के सामने अपनी गर्दन पेश कर देंगे कि शहीद की कब्र से छेड़ छाड़ नही कर सकता और आपकी तौहीन भी नही कर सकता। सो यदि कोर्ट फ़िर भी इस पत्र को लिखवाने का आदेश देती है, तो वे अपने पद से इस्तीफ़ा दे देंगे और दूसरा प्रधानमंत्री कोर्ट क आदेश की तामीळ करेगा। अगर पत्र लिखने की नौबत आना ही है तो पाकिस्तान का अगला प्रधानमंत्री PML Q  के नेता चौधरी शुजात हुसैन हो सकते है। वे पीप्ल्स पार्टी के साथ गठबंधन की सरकार मे शामिल ही हैं। लेकिन सब इतना जल्दी भी नही होने वाला जैसा सनसनी फ़ैलाउ मीडिया हमे बता रहा है।



वैसे पाकिस्तान के बारे में ऐसी भविष्यवाणिया करना सही भी नही, अल्लाह के नाम पर बने देश का अल्लाह ही मालिक है।